लोग कहते हैं

वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा लिखते हैं : शहरोज़ मूलत:कवि है.पेशा पत्रकारिता .लेकिन पत्रकारिता या कहानी में उसका कवि पक्ष हावी नहीं होता .मुझे लगता है ,शहरोज़ पर बात करने के लिए , सर्वप्रथम उसके समूचे रचनाकर्म पर काम करने की ज़रुरत है ,जैसा कभी भगवतीचरण वर्मा पर नीलाभ ने किया था .उर्दू ज़मीन के चलते इसकी भाषा में जादुई निखार आ जाता है .
बकौल कवि-चिन्तक आर चेतनक्रांति :पहले शहरोज़ एक व्यक्ति जिसका साथ कभी कठिन नहीं होता , जो किसी का रास्ता नहीं काटता और जो अपनी दावेदारी सबसे बाद में रखता है . यह गुण मनुष्यों कि एक लगभग दुर्लभ प्रजाति के हैं .....दैनिक भागदोड़ में जब भी वो ऐसी चीजों से रूबरू होता है जो उससे आदमी होने के नाते जवाब तलब करती हैं ,वो कविता लिखता है और सच्चे क़लमकार की तरह इस धारणा का खंडन करता है की दुनिया में कोई संवेदनशील अब नहीं बचा .
अन्का बरियारपुरी ने कभी खाकसार के लिए कहा था :

इक फरिश्ता गली में निकला है
इस गली को अदम कहा जाये

युवा रचनाकार साथी निशांत कौशिक रक़म-तराज़ होते हैं:

सहरा मैं कितनी भी आंधियां आयें.. कुछ खासियत है की पूरी रेत कभी ख़तम नहीं होती..ये कोई घटना अथवा व्यवस्था नहीं है.. यह नियति है.. और ऐसा कुछ अगर इंसान मैं भी हो तो.. वो मरुस्थल का नहीं समंदर का उदाहरण बनकर उभरता है..शहरोज़ भी ऐसे ही हैं..मैं इनसे अनुभव और अध्ययन और उम्र सभी मैं छोटा हूँ.. मगर ये किसी को अपने से छोटा नहीं होने देते.इनकी दृष्टि व्यापक है..धर्म और जाती आदि के नाम से होने वाले पाखंडों से ये अपनी दृष्टि को हटाकर चलते हैं..साहित्य की बात करें तो..प्रयोगवाद और प्रगतिवाद का मिश्रण हैं..

नवजवान शायर बेकस के शब्द :

दीरोज़ कोई और मिला इमरोज़ कोई और,
हर मोड़ पर हमको मिला दिलदोज़ कोई और,

फरोज़ कोई शहर में हनोज़ ना मिला,
तुझसा न मिला हमें शहरोज़ कोई और.

जिनका नाम ही पन्त जैसे कवि ने रखा, निश्छल संवेदनाओं की कवयित्री रश्मि प्रभा के ख़याल हैं :

शहरोज़ ही आगाज़ बने................
आकाश से अमृत की एक बूंद गिरी
नाम मिला 'शहरोज़'
मिली साथ में कलम अल्लाह की
एक-एक लफ्ज़ अजान बने
दुआ यही है रसूलल्लाह से-
जीवन की हर बात बने
हुई कभी जो रुसवाई
अल्लाह का बस रहम रहे
जहाँ कोई हो नई चुनौती
शहरोज़ ही आगाज़ बने................

कवि कुलवंत सिंह अपनी एक ग़ज़ल समर्पित करते हैं:

जब से तेरी रोशनी आ रूह से मेरी मिली है ।
अपने अंदर ही मुझे सौ सौ दफा जन्नत दिखी है ॥

आस क्या है, ख्वाब क्या है, हर तमन्ना छोड़ दी,
जब से नन्ही बूंद उस गहरे समंदर से मिली है ।

प्रात बचपन, दिन जवानी, शाम बूढ़ी सज रही,
खुशनुमा हो हर घड़ी अब शाम भी ढ़लने लगी है ।

गम जुदाई का न करना, चार दिन की जिंदगी,
ठान ली जब मौत ने किसके कहने से टली है ।

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सैयद शहरोज़ क़मर



 सम्प्रति दैनिक भास्कर के रांची संस्करण में विशेष संवाद दाता 

दादा हकीम फजीलत हुसैन फारसी में शायरी किया करते थे। बड़े चाचा असलम सादी पुरी उर्दू के उम्दा-उस्ताद शायर हुए। पिता हाजी सैयद मोहम्मद मुस्लिम को भी शायरी का शौक़ रहा.लेकिन अचानक क़लम रोक दी.बुजुर्गी में जूनून फिर हावी।
बड़े भाई एजाज़ अख्तर ने हिन्दी में कवितायें लिखीं, पर प्रकाशन-चर्चा से परहेज़। अपनी उर्जा नाट्य-मंचों में खपाया. मंझले भाई शाहबाज़ रिज़वी ने उर्दू में अच्छे अफसाने लिखे .प्रकाशित भी.फिलवक्त निष्क्रिय  .मंझली भाभी रूमाना रिज़वी को उर्दू-लेखन में रुचि।
पत्नी इमाला ने छात्र-जीवन में बाल-कथाएँ लिखीं.सम्प्रति बाल-गोपाल के पोषण में व्यस्त. मेरी रचनाओं की पहली पाठक-समिक्षक।
शेरघाटी में बज्मे-अदब तथा युवा शायर फर्दुल हसन और रायगढ़ में प्रगतिशील लेखक संघ तथा युवा लेखक हेमचन्द्र पांडे की प्रेरणा पल-पल साथ रही। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार गुरुदेव कश्यप और हिन्दी दैनिक जनसत्ता
मेरे पत्रकारीय लेखन के प्रेरणा-पुंज आज भी हैं.
किशोरवय में लिखी रचनाओं का परिमार्जन गुरुदेव पंडित नर्मदेश्वर पाठक (शेरघाटी) करते रहे।
दिल्ली में विष्णुचंद्र शर्मा तथा उनकी पत्रिका सर्वनाम की सम्बद्धता ने लेखन के कई द्वार खोले। सादतपुर से बहुत कुछ सीखा

क़रीब ढाई दशक से अधीक समय गुज़रा हिन्दी पत्रकारिता और लेखन में सक्रिय।


शहरोज़ कुमार, सैयद शहरोज़ कुमार, एस.कुमार ,सैयद एस क़मर, क़मर सादीपूरी और शहरोज़
के नाम से भी लेखन

१५ अक्टूबर, १९६७(सही १९६८) को मध्य-बिहार के शेरघाटी (गया) कस्बे में जन्म ।
शिक्षा स्नातक (वाणिज्य), स्नातकोत्तर (अंग्रेज़ी)_ गुरु घासीदास विश्वविद्यालय , बिलासपुर।
और पत्रकारिता व जनसंसार जन-संचार में उपाधि -पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर ।

भाषा-ज्ञान हिन्दी,उर्दू । अंग्रेज़ी , अरबी और फ़ारसी कामचलाऊ ।

सक्रियता सामाजिक, सांस्क्रतिक व साहित्यिक गतिविधियों में।
शेरघाटी में सक्रीय संस्था आह्वान और रायपुर की संस्था कौमी आवाज़ के संस्थापकों में ।
रायगढ़ और शेरघाटी में अल्लामा इकबाल पुस्तकालय की स्थापना।
N.S.S..में रहते सम्मान।

S.F.I. रायगढ़ जिला इकाई का महासचिव और उपाध्यक्ष रहा.

पत्रकारिता की शुरुआत रायगढ़-संदेश में समस्या-मूलक पत्रों से।

कार्य-अनुभव दिल्ली और ग्वालियर के साप्ताहिकों नई ज़मीन और शिलालेख के लिए लेखन।
रायपुर के दैनिकों समवेत-शिखर,अमृत-संदेश और देशबंधु में नोकरी।
कथादेश,युद्धरत आम आदमी,सर्वनाम जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं और बाल-मासिक नई पौध
में संपादन-सहयोग।
दैनिक अमर उजाला और साप्ताहिक समय वार्ता तथा राजकमल,राजपाल और सरस्वती हाउस जैसे प्रकाशनों से सम्बद्ध रहे।
नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया की एक परियोजना पर कार्य।

सानिध्य वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु प्रभाकर और ख्यात आलोचक शिवदान सिंह चौहान के चंद माह सहायक।

सृजन-प्रकाशन जनसत्ता, हिंदुस्तान,भास्कर,नवभारत,राष्ट्रिय सहारा,देशबंधु,प्रभात ख़बर ,अग्रदूत और रायगढ़-संदेश जैसे दैनिकों
आउटलुक,आमंत्रण, नई ज़मीन,शिलालेख और हिन्दी-मेल जैसे साप्ताहिकों
हंस,सर्वनाम,कथादेश,अलाव,वर्तमान साहित्य, संबोधन,समकालीन भारतीय साहित्य,अक्षर पर्व और सद्भावना-दर्पण जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं
बी.बी.सी.और रविवार जैसी वेब पत्रिकाओं
में लेख,आलेख.समाचार,रपट,विश्लेषण,अनुवाद,समीक्षा,कहानी और कविता प्रकाशित-प्रसारित।

रेडियो और दूरदर्शन के लिए भी लेखन।

पयामे-तालीम,शगुफ्ता और नई दुन्या जैसी उर्दू पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशन।
अमृत-संदेश में मनन और सर्वनाम में इधर जो पढ़ा नाम का स्तम्भ ।
सर्वनाम के युवा-कवितांक का संपादन-सहयोग।

लगभग ५०० पुस्तकों का ब्लर्ब-लेखन
कई पुस्तकों का आवरण
कई पत्र-पत्रिकाओं में रेखांकन

उर्फ़ इतिहास-कविता-संग्रह
साक्षात्कार:कैसे हों तैयार-करियर
उर्दू के श्रेष्ठ व्यंग्य
पकिस्तान की शायरी (अनुवाद-संपादन)
विष्णुचंद्र शर्मा की संस्मरणात्मक पुस्तक पीर परायी जाणे रे
कश्मीर के शायर ओम् गर्याली की शायरी घुटन
उर्दू  के शायर ज़ुबैरुल हसन 'ग़ाफिल'  की शायरी अजनबी शहर  
छत्तीसगढ़ के गीतकार रामगोपाल शुक्ल का गीत-संग्रह हीरा है तो दमकेगा ही
मगही गीतकार नर्मदेश्वर पाठक के संग्रह ज़िंदगी पोर-पोर 
का संपादन

सरहद के पार पाकिस्तानी गज़लों का चयन
फायर वाटर टू गेदर -रामनारायण स्वामी से संवाद

अन्यत्र

आलोचक अजय तिवारी ने पुस्तक साहित्य का वर्तमान में बहैसियत कथाकार रेखांकित किया।
कथाकार शैलेश मत्यानी ने पुस्तक किसे पता है राष्ट्रिय शर्म का मतलब में बहैसियत पत्रकार
संवाद किया .


इटारसी की पत्रिका पुनश्च ने रचना-कर्म पर केद्रित पुस्तिका शिनाख्त का प्रकाशन किया।
रचना-धर्म की चर्चा हिन्दी मोनोरमा इयर बुक में लगातार दो वर्ष

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RESUME

SYED SHAHROZ QUAMAR
Journalist/ Writer / Editor / Translator/ Poet.

Special Correspondant
Dainik Bhaskar, (Jharkhand)

contact 8083557257




LAST JOB: Worked as a Editor with
 RAJKAMAL PARAKASHAN PVT. LTD.
 New Delhi-110002


E-mail: shahroz.syed@gmail.com
Webpage:http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com
http://hamzabaan.blogspot.com
http://saajha-sarokaar.blogspot.com

Qualifications


B.Com & M.A. (in English) from Guru Ghasidas
University, Bilaspur (Chattisgarh)
Post Graduate Diploma in Journalism & Mass Communication.
From Pt. Ravishankar Shukla University, Raipur (Chattisgarh).

Born in 1967- on 15th October
S/O Late Haji Syed Muhammed Muslim

Languages Known

Hindi, Urdu & English (Working)

Professional Experience

Working as a Journalist & Editor with Hindi Print Media, (News Papers and Books) and translation from English and Urdu Journals and books from last seventeen years. Details as follows-

City Reporter, from 1988-1991.
With RAIGARH SANDESH, Hindi daily, Raigarh (C. G.).
Reporting & Editing.

Correspondent, from 1992-may 1994.
With NAIZAMEEN & SHILALEKH Hindi weekly, from New Delhi and Gwaliar respectively.
Reporting on Political, Cultural and Social activities.


Feature-Editor, from October 1994-November 1996.
With AMRIT SANDESH, Hindi daily and AMANTRAN Hindi weekly, Raipur (C.G.)
Editing, writing news and features, translation.

Sub-Editor, from December 1996-November 1997.
With DESHBANDHU, Hindi daily, Raipur (C.G.)
Editing, writing News and translation.

Sub-Editor, from August-December 1998.
With KATHADESH, Hindi literary monthly, Delhi
Editing, Proof reading and other Jobs relating to Journal Publishing.

Astt. Editor, from May 1999-Feb 2000.
With YUDHRAT AAMAADAMI, Hindi quarterly, New Delhi.
Editing, Proof reading and other Jobs related to magazine publishing.

Sub-Editor, from March 2000 – June 2001
With RAJKAMAL PRAKASHAN Pvt. Ltd. New Delhi.
Editing manuscripts, Blurb-writing, preparing press copy for literary books and editing a house journal.

Sub-Editor, from Oct. 2001 – May 2003.
With AMAR UJALA Hindi Daily
Editing, writing News and translation.

Senior Sub-editor, from Jun 2003 –December2004.
With SAMAYA VARTA, Hindi Weekly.
Editing, writing News and translation.

Senior Sub Editor, from January2005-Feburary 2006.
With RAJPAL & SONS, Delhi.
Editing manuscripts and preparing press copy.

Worked on a project of Anthology with
NATIONAL BOOK TRUST, INDIA,
from March2006-Feburary 2007.
New Delhi.

Publication

Published several reports, articles, reviews and features in reputed Hindi dailies as Rashtriya Sahara, Jansatta, Hindustan, Amar Ujala , Bhaskar, Deshbandhu, Prabhat Khabar and Amrit Sandesh etc.
Hindi weeklies like Outlook, Paratham Paravakta, Nai Zameen, Amantran, Hindi Mail and Shilalekh etc.
Several book reviews, notes, poems, stories and translation in well- known Hindi Journals- Hans, Sarvanam, Sakshatkar, Alav, Kathadesh, Aajkal , Aksher perwa, Samkaleen Bhartiya Sahitya, Nai Paudh and Sadbhawana derpan etc.

Urdu Journals as Nai Duniya (Famous weekly), Pyametalim (monthly) and Shagufta (Quarterly)

Translation Assignments

Talking Songs; (Javed Akhtar)
Urdu Afsane ka Jaiza (Jogindar Pal)
A Study of Gandhi’s Basic Education (Henry Fagg)

Electronic Media

Poems on www BBC.com
Time to time several Article broadcast on Dilly Diary, Air Urdu Service and Udyogic Samachar on Dilly-A Script
writing for Doordarshan’s Patrika, Sirjan, Kala Parikarma and Kitab Ki Duniya।


Published Work

Urf itihaas (poems)collection of my hindi poems is noted for its richness of experience. On the level of language the work touches upon various realms of moods in the life of the people.
Sakshatkar: Kaise Ho Taiyyar(Career), From RAJKAMAL
Urdu ke Shreshtha Vyanga( best urdu satire)
Pakistan Ki Shairi , From RAJPAL
-->Ajnabee Shahar,[poetry of urdu poet Zubair-ul-Hasan 'Ghafil' ].Translation & compilation of last three books.
Peer Parai Jane Re , (Compilation of Vishnuchandra Sharma‘s Memoirs)
Hira hai to damkega hi (Copilation of poetry)
Ghutan(Copilation of Gazlein)
Fire water to gather (Conversation with a poet)

A literary magazine Punashcha published a journal on my work.
My literary work has been appreciated by Malayalam Manorama-2006 & 2007

Worked as an Assistant with
Well-known Hindi writer Vishnu Prabhaker- (1993).
Famous critic Shivdan Singh Chauhan (1999).

Permanent Contacts:

-Ekta Street, Rambhata, Raigarh (C.G.) 496001
-Quazi Muhalla , Sherghati , Gaya (Bihar) 824211

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